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PrajnaParamita Aparajita

Abstract

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PrajnaParamita Aparajita

Abstract

मैं

मैं

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मैं नूर हूँ, मैं हूर हूँ,

अपने ही शब्दों मैं चूर हूँ

हर पल खुद को तराशती,

मैं जो भी हूँ क्या ख़ूब हूँ,

मैं आस हूँ.....


मैं रात हूँ, रात रानी भी,

अपनी कहानी की चाँद भी, 

लिखते मिटाते नए रूप संग, 

मैं जो भी हूँ कुछ ख़ास हूँ,

मैं प्यास हूँ.....


सूरज की सूरजमुखी हूँ मैं ,

मैं वो आग भी और राख भी,

हर पन्ने मैं सिमटी हुई ,

मैं जो भी हूँ क्या ख़ूब हूँ ,

मैं तेज हूँ ....


मैं आँसू हूँ और वो आँख भी,

दिल मैं बसी तन्हाई हूँ,

हर पन्ने मैं सिकुड़ी वो काग़ज़ हूँ,

मैं जो भी हूँ बेहद ख़ास हूँ,

मैं एहसास हूँ.....


मैं अपनी हूँ और परायी भी,

कलम से लिखी हर किरदार हूँ,

बैठी जब मेरे शब्दों की दुनिया मैं ,

मैं कलम स्याही संग लाजवाब हूँ,

मैं ख़ास हूँ.......

मैं अपने मैं ही ख़ास हूँ ..


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