यादें
यादें
यादें ...संवारती कहाँ है
दहला के तोड़ जाती है,
यादें ..........सँवरती कहाँ है,
जितना भी चाहो तासीर वही रहती है,
ये यादें ही तो हैं,
बीत के भी बीतती नहीं असर सी,
हँसी वाली हो या आँसू जड़ी,
ज़रूरी बाकी रही किसी कसर सी....
शायद यादें हैं बस यादों सी......
आज की अपनी जद्दोजहद में ...
बेख़ौफ़ बेअसर रहती है
आज ज़ख़्म मिले तो भी ..
तसल्ली भी देती नहीं है,
ना जाने कैसी है ये....
मरहम ना मलहम सी,
यादें हैं शायद यादों सी.....
भीड़ से निकल के तसल्ली में....
वो आती हँसी या आँसू दे जाती,
सिरहाने टटोलो तो मिलती नहीं...
तन्हाई में ज़रूर साथ निभा जाती,
सच में ना इसके उसके जैसी ....
यादें हैं बस यादों सी...
