ए ज़िंदगी....
ए ज़िंदगी....
सिरहाने तेरी ही किताब छुपाए हर रात बीतती है मेरी
बिस्तर की सिलवटें तेरी रूबरू रहने की गवाही है मेरी
हर रात ए ज़िंदगी तेरे ही सपने यादों में बेरुख़ी तेरी
मोहब्बत इतनी शायद हो किसी से मेरी
सुबह को मुलाक़ात मुमकिन भी शायद ना हो
फिर भी शुक्राना तेरा दिल से है ए ज़िंदगी..
हर ख़ुशी, हर हँसी, हर मरहम का शुक्रिया,
हर आंसू , हर दर्द, हर वो ज़ख़्म का शुक्रिया,
मुझमें तेरी तलब का शुक्रिया,
कल मिले ना मिले पर हर पल मेरी बने रहने का शुक्रिया
तू है तो में हूँ..... तुझसे है वजूद मेरी।