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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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जादुई दुनिया

जादुई दुनिया

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जितनी बार इसे देखा 

हर बार अलग अलग दिखी 

ये दुनिया बड़ी अलबेली सी है 

हर बार नये नये रंग में दिखी । 

जब कभी मौज में था मैं 

ये दुनिया मुझे अपनी सी लगी 

बड़ी प्यारी बड़ी दिलकश बड़ी रंगीन

किसी हसीन नाजनीन सी लगी 

जब कभी गमों के सागर में डूबा

ये दुनिया बड़ी बेगानी सी दिखी 

बड़ी स्वार्थी , धोखेबाज, बेईमान

बड़ी संगदिल हरजाई सी दिखी । 

गिरगिट की तरह रंग बदलती है 

कभी अजनबी कभी पहचानी सी लगती है 

बड़ी जादुई दुनिया है ये साहब 

ना जाने यह कितनों को छलती है । 



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