मैं
मैं
उसने आज इक़रार कर लिया
किसी से प्यार हो गया है
काश! वो किसी से....
मैं ही रहा होता।
मैं अनजान नही था
बना दिया गया हूँ
किसी जान-पहचान की ख़ातिर
वो पहचानने वाले जो
आधार रहे है मेरी खुशियों का
अब मैं उनकी आफ़त में जान बन गया हूँ
काश! यह आधार यह आफ़त यह जान
मैं उनकी न रहा होता!
वो दुआओं में रब से
जाने क्या मांगते हैं ?
मैं उन्हीं की मुस्कुराहट
मांगता हूँ अपने रब से
जो मिलना तय है हमकों
दोस्तों मुक़द्दर है अपना
हम कर्मों का फिर क्यों
सिला मांगते है ?
वो दुआएँ वो मुस्कुराहट
वो मुक़द्दर काश!
मैं ही रहा होता।
