दास्तान-ए-इश्क
दास्तान-ए-इश्क
ये खत्म क्यों नहीं होती,
ये दफ़न क्यों नहीं होती,
ये दास्तान-ए-इश्क पूरी क्यों नहीं होती,
ये दास्तान-ए-इश्क पूरी क्यों नहीं होती
दो पल की ख़ुशी दे,
ये आजीवन का दर्द क्यों देnजाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क हमें अधूरा क्यों कर जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क हमें अधूरा क्यों कर जाती है
आँखों मे नमी, होठों पे हँसी,
तो चेहरे पर खामोशी दे जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क जाते जाते शख्सियत ही बदलदे जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क जाते जाते शख्सियत ही बदलदे जाती है
जब किस्मत मे ना लिखी हो,
तो ज़िन्दगी में क्यों आती है,
ये दास्तान-ए-इश्क हमें तन्हा क्यों कर जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क हमें तन्हा क्यों कर जाती है
आबाद कर,
फिर बर्बाद क्यों कर जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क तभा क्यों कर जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क तभा क्यों कर जाती है
आम से इस जिन्दगी में चाशनी सी मिठास घोल,
फिर कड़वाहट क्यों दे जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क तोड़ क्यों जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क हमें तोड़ क्यों जाती है
किस्मत बदले या ना बदले,
किस्मत बदले या ना बदले,
ये जिंदगी बदल ही जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क अधूरी ही रहे जाती है,
ये दास्तान-ए-इश्क अधूरी ही रहे जाती है........