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khushboo gupta

Abstract

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khushboo gupta

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दास्तान-ए-इश्क

दास्तान-ए-इश्क

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ये खत्म क्यों नहीं होती,

ये दफ़न क्यों नहीं होती,

ये दास्तान-ए-इश्क पूरी क्यों नहीं होती,

ये दास्तान-ए-इश्क पूरी क्यों नहीं होती


दो पल की ख़ुशी दे,

ये आजीवन का दर्द क्यों देnजाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क हमें अधूरा क्यों कर जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क हमें अधूरा क्यों कर जाती है


आँखों मे नमी, होठों पे हँसी,

तो चेहरे पर खामोशी दे जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क जाते जाते शख्सियत ही बदलदे जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क जाते जाते शख्सियत ही बदलदे जाती है


जब किस्मत मे ना लिखी हो,

तो ज़िन्दगी में क्यों आती है,

ये दास्तान-ए-इश्क हमें तन्हा क्यों कर जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क हमें तन्हा क्यों कर जाती है


आबाद कर,

फिर बर्बाद क्यों कर जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क तभा क्यों कर जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क तभा क्यों कर जाती है


आम से इस जिन्दगी में चाशनी सी मिठास घोल,

फिर कड़वाहट क्यों दे जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क तोड़ क्यों जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क हमें तोड़ क्यों जाती है


किस्मत बदले या ना बदले,

किस्मत बदले या ना बदले,

ये जिंदगी बदल ही जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क अधूरी ही रहे जाती है,

ये दास्तान-ए-इश्क अधूरी ही रहे जाती है........



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