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Kavita Verma

Abstract

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Kavita Verma

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ठहराव

ठहराव

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सिर्फ टूटी हुई दीवारों से 

नहीं बनते खंडहर 

सजे हुए महलों में भी 

खंडहर सांस लेते हैं। 


लोगो के चले जाने से 

नहीं होती वीरानियाँ 

महफ़िलों में भी 

वीरानियाँ ठहाके लगाती हैं।


रिश्तों के टूटने से ही 

नहीं होता दर्द 

जुड़ने की ख़ुशी में भी 

दर्द कराहता है। 


टूटन सिर्फ रिश्तों के 

दरकने से नहीं होती 

रिश्ते के ठहर जाने में भी 

कुछ दरक जाता है। 


एहसास किसी के होने का 

न होने से जुदा होता है 

होकर न होने का 

एहसास तोड़ देता है। 



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