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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

Abstract

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Ramashankar Roy 'शंकर केहरी'

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चलो लम्हे चुराते

चलो लम्हे चुराते

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चलो लम्हे चुराते हैं

चलो यादें सहलाते हैं

वो भी पल क्या पल थे

होते जब हम हम ना थे


तेरी बेरुखी भी प्यारी लगती थी

मेरी नादानियां भी गुदगुदाती थी

ना ही बचपना ना ही समझदारी थी

शरारतों में भी शालीन जिम्मेदारी थी


एक के सपने में दूसरा रंग भरता 

अदला बदली सपनों का सुहाता

बन बादल के टुकड़े कल्परूप बदलना

यादों के बादल का उन यादों पर मुस्कुराना


चलो लम्हे चुराते हैं

चलो यादें सहलाते हैं !


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