तजुर्बा
तजुर्बा
सब को, सब कुछ कहां मिल पाता है?
कुछ हाथ आता है,और कुछ,
हाथ आते - आते बस यूं ही,
महीन रेत की तरहा हाथ से फिसल जाता है।
मानो या न मानो,
पर वो तजुर्बा ही तो ज़िन्दगी कहलाता है।
अपने और गैरों का फर्क,
वह दिल का घाव करवाता है।
सब को, सब कुछ कहां मिल पाता है?
कुछ हाथ आता है,और कुछ,
हाथ आते - आते बस यूं ही,
महीन रेत की तरहा हाथ से फिसल जाता है।
मानो या न मानो,
पर वो तजुर्बा ही तो ज़िन्दगी कहलाता है।
अपने और गैरों का फर्क,
वह दिल का घाव करवाता है।