STORYMIRROR

Ambika Nanda

Abstract

3  

Ambika Nanda

Abstract

तजुर्बा

तजुर्बा

1 min
245


सब को, सब कुछ कहां मिल पाता है?

कुछ हाथ आता है,और कुछ,

हाथ आते - आते बस यूं ही,

महीन रेत की तरहा हाथ से फिसल जाता है।

मानो या न मानो,

पर वो तजुर्बा ही तो ज़िन्दगी कहलाता है।

अपने और गैरों का फर्क,

वह दिल का घाव करवाता है। 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract