घोंसला
घोंसला
एक एक ईंट जोड़,
बनाया घोंसला छोटा सा।
पाल पोस कर,
हर चूज़े को भी उड़ना सिखाया।
बदला समय का चक्र,
अब ढलने लगी उम्र है।
झोला उठा जो शरीर ,
सारी गृहस्थी का बोझ उठाता था।
आज चंद क़दमों में ही,
थक जाती हैं ये बूढ़ी हड्डियाँ।
उम्र के इस दौर में,
शांत है मन,न आस किसी की,
न उम्मीद किसी से,
न शिकवा,न शिकायत किसी से।
जाने क्या सही है, क्या ग़लत,
उम्मीद और न उम्मीद के बीच,
बस सरकती हुई सांँसें।