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Ambika Nanda

Tragedy

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Ambika Nanda

Tragedy

घोंसला

घोंसला

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एक एक ईंट जोड़,

बनाया घोंसला छोटा सा।


पाल पोस कर,

हर चूज़े को भी उड़ना सिखाया।


बदला समय का चक्र,

अब ढलने लगी उम्र है।


झोला उठा जो शरीर ,

सारी गृहस्थी का बोझ उठाता था।


आज चंद क़दमों में ही,

थक जाती हैं ये बूढ़ी हड्डियाँ।


उम्र के इस दौर में,

शांत है मन,न आस किसी की,

न उम्मीद किसी से,

न शिकवा,न शिकायत किसी से।


जाने क्या सही है, क्या ग़लत,

उम्मीद और न उम्मीद के बीच,

बस सरकती हुई सांँसें।



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