STORYMIRROR

Dr.GAURI NIRKHEE

Tragedy

4  

Dr.GAURI NIRKHEE

Tragedy

मुझे समझने के लिए..

मुझे समझने के लिए..

1 min
273


मुझे समझने के लिए..

तूम्हारे पास जजबात होने चाहिए...

अपनी ऐनक की धूल जरा झटकाकर देखो..

मुझे जरा मेरे नजरिये से समझकर देखो...

हँसते हँसते अपने सपनो को मिटाना आसान नही था..

वो डिग्री का कागज मेरे कलेजा का टुकड़ा था..

आज इसी 'घर' के लिए मैने उसे..

हँसते हँसते चूल्हे में जलाया था...।

मुझे समझने के लिए...

जरा कभी अपने सपनो को टूटते हुए देखना सीखो..

हारकर हिम्मत जरा हिम्मत से खडे रहना सीखो..।

मुझे समझने के लिए..

जरा मेरे अपनो को मेरे हुनर के बारे में पूछो...

टूटती थी कलम कभी तो कितना रोते थे ये पूछो..

नन्ही सी आँखो में कितने ख्वाब सजाए थे पूछो..

मुझे समझने के लिए....

जरा मुझे मेरे अंदाज से देखो।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy