वृक्ष का जीवन
वृक्ष का जीवन
हूँ पेड़ एक मैं सुना रहा, अपने जीवन की दास्ताँ
किन कठिनाई से लड़कर के पाया था अपना रास्ता
आँखें खोली कोमल सा मैं धरती मां के आंचल में था,
चकाचौंध से भरी हुई इस दुनिया को था देख रहा
धीरे- धीरे ज्यों समय बढ़ा, मैं धीरे- धीरे बड़ा हुआ
एक वृक्ष बन गया था मैं जब दोस्ती हुई मानव से तब,
मानव को भोजन मैंने दिया, औषधि दी घायल था वो जब,
वो रहे सुरक्षित छह मेरी, मैं खड़ा धूप में तपता तब,
ऑक्सीजन दी संग में मैंने, इस प्रकृति का सिंगार था मैं
मानव के दिये हुए प्रदूषक तत्वों की भी काट था में
पर इक दिन ऐसा भी आया मानव ने मुझको दगा दिया,
अपने कुछ स्वार्थों के कारण उसने मुझको है कटा दिया
पर एक बात सुन लो मानव, धमकी समझो या चुनौती मेरी,
वृक्ष बिना धरती होगी, रेगिस्तानी बंजर भूमि।।