संवेदना....
संवेदना....
1 min
10
मन जो अधिक हो भावुक जन का.....
पाप है क्या
दर्द समझना किसी के मन का.....
श्राप है क्या
सब आंसू अपने दृग लेना
पीड़ा सबकी मन पे लेना
दर्द लगे ऐसा ज्यों अपना
ये कोई खिलवाड़ है क्या.....
तकलीफ चुभे ऐसे ज्यों खुद ही
हम पर गुजरा दुख सबका
सबके दुख बंधु बनने को ,
मन का ये विचलित होना ....
प्रकृति का प्रतिकार है क्या
मन जो अधिक हो भावुक जन का...
पाप है क्या...
