तुम क्या
तुम क्या
मेरे गम को साखी तुम क्या पहचानोगे
दरिया से लहरों को तुम क्या निकालोगे।
टूटकर भी हम फूलो से मुस्कुराकर रोये है
मेरे अक्स को तुम क्या शीशे से देखोगे।
हमारी तो ख़ुद की ख़ुद से ही नही बनी है
मेरे जख्मों पर तुम क्या मरहम लगाओगे।
पत्थर भी रो पड़े हैं, सुनकर दर्द हमारा,
मेरा दर्द, बेदर्द ज़मानेवाले तुम क्या जानोगे।
