भावनाओं का संप्रेषण
भावनाओं का संप्रेषण
छलका को जल
गागर से
तब ये एहसास हुआ
गिर कर संभलना
नियती है हम मिट्टी
के पुतलों की।
ज़िन्दगी के पन्नों में
प्रेम को तर्बियत से
शामिल करना
सिर्फ ज़रूरत नहीं
हकीकत है भावनाओं के
संप्रेषण की।
एहसासों के पुलिन्दें से
जीवन की नैया को
सीचा है
संग जो दे गए सपने
तो फूलों का
गुलिस्तान अपना है।
आंगन की चहल-पहल
किलकारियों से गुंजित
अपना सम्मोहन बिखेरेगी
मानो फरिश्ता खुले आसमान से
ज़मीन में राग मनोहर गायेंगे।