ईबादत
ईबादत
बसंत ऋतु आगमन है
परदेश से लौटे साजन हैं ,
बेसबरी से इंतेजार था
जिन आँखों को उनका
तृप्ती मीठे नयनों की
गंगा जैसी पावन है।
लगता है ऐसे अब
रूबरू मेरे बैठे रहो
देख कर तुमको
बस शिद्दत से
ईबादत करती रहूँ।
दिन आया है फिर लौटकर
खुशियों के कदम चूमने
दुनिया की हर मुश्किल से
आलिंगन तुम्हारा शोना
बड़ा अनूठा बंधन है।
सजदा तेरे नाम का
दिल की धड़कनों से
करती हूँ शुरू
सांसों के हर पल में
बसता है एक तू।
जब तक देखूँ न तुझे
सुकून और चैन मिलता नहीं,
एहसास तेरा मेरे लिए
मंदिर मस्जिद चर्च गुरद्वारे में
सर झुकाने से कहीं बढ़कर है।