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Rajni Sharma

Others

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Rajni Sharma

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रिश्तों के तकदीर में

रिश्तों के तकदीर में

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हम इस कदर न टूटे कभी 

ज़माने की भीड़ में 

छूटा खुद का दामन खुद से 

न कोई अब अपना होगा 

रिश्तों की तकदीर में

ताबीज में न दुआ है 

न है प्रेम का अफसाना 

सिर्फ नफरत ही देखी है 

अधूरा रह गया हर एक 

ज़िन्दगी का मीठा तराना।

गीत कौन से अब गुनगुनाऊँ 

राग सब फीकी पड़ी 

विरह ऐसी दी मीत ने 

सही अब न मुझसे जाये 

धड़कन है सूनी पड़ी।

कोई तो संभाल लो 

टूटे गागर के प्रवाह को 

मिट्टी में तो मिलना ही है 

आज नहीं तो 

कल परसों।




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