STORYMIRROR

Bhavna Thaker

Abstract

4  

Bhavna Thaker

Abstract

अलौकिक अनुभूति

अलौकिक अनुभूति

1 min
343

जिस्म से परे 

आँखें मूँदे मनचक्षु से

शून्य में 

जब तुम्हे निहारूँ मैं 

तब एक पावन रोशनी

प्रकट हो तुमसे


जो मेरी रूह के

शून्य से एकाकार हो कर

प्रेम से बहाकर ले जाए

समय और स्थान से परे हमें 

एक अलौकिक दुनियाँ में 


जहां दो शून्य एक होकर 

हद और बेहद की

सीमा लांघ कर

दुई का भेद मिटा दे

बस खो जाए 


साक्षी बन देखते रहे

जब मन और शरीर

एक दूसरे की

इश्क ए इबादत को

तब उस अमन की स्थिति में

जो  घटित हो

मौन समाधिस्थावस्था 


उसे  बयान ना कर

पाए कोई अल्फ़ाज़ 

बस इतना ही कहूँ

कि उस अलौकिक अनुभूति में

बहते बीतें सदियाँ 


दो प्यासी रूहों का संगम रचे

मिलन का मंज़र ऐसा हो की

कभी जुदा न हो 

काफ़ी है ये अहसास

मेरे जीने के लिए।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract