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Aabha jaiswal

Abstract

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Aabha jaiswal

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लौट आने वाले थे

लौट आने वाले थे

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लौट आने वाले थे हम,

पर नाराज़गी अभी भी बाकी थी,

तुम कहते हो की हर बार आए तुम

तो इस बार कौन सी शिक़ायत है।


इसी बात से खफा हुए हम,

हर बार अपना समझ कर आए थे,

और तुमने हमराही भी नहीं समझा

लौट आने वाले थे हम।


पर एक और माफ़ी,

दिल को सही नहीं लगा

तुम जैसे सर्पों से बेहतर

इसको अकेला रहना ही अच्छा लगा।


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