बसंत पाओगे
बसंत पाओगे
प्रकृति हमारी बहुत निराली
इससे जुड़ी दुनिया हमारी
प्रकृति से ही है धरा निराली
प्रकृति से फैली हरियाली
वसंत ऋतु में नाचे मोर
करते हमको भावविभोर
पीला रंग छाया चारों ओर
बसंत आया बन के चित चोर
सुखी समृद्ध बने सब लोग
तिमिर हटा छाया आलोक
हरी-भरी है धरा चारों और
कितनी प्यारी हुई है भोर
जन-जन को यह समझाएं
नित्य नए पेड़ उगाए
जीवन चक्र प्रकृति का नियम है
प्रकृति को अगर सताओगे
तो बसंत कहां से पाओगे।