मै हिन्दी हिन्दुस्तान की....
मै हिन्दी हिन्दुस्तान की....
मैं शब्द कोष से निकला एक अक्षर हूँ
शब्द में जुड़ता हूँ तो अपना अस्तित्व लेता हूं ,
वाक्य में जुड़ता हूँ तो अपना अर्थ देता हूं।
मेरी सार्थकता या निर्थकता को ,
पढने वाले और उस वाक्य के अर्थ को ,
समझने वाला ही जान सकता है ।
मैं आधिकारिक तौर पर पूरा तो नहीं,
पर अधूरी क्षमता भी मुझमें नहीं ,
हर अक्षर, हर शब्द, हर वाक्य पर मेरा अपना अधिकार है
किसी और के लहजे से मुझे सदा ही इनकार है,
मै शेष अशेष का ध्यान रखती हूँ ।
मैं उच्चारण और लिखने का दोगला रूप नहीं अपनाती,
मैं हिन्दी हूँ अपने हिन्दुस्तान की.......!
जय हिन्दी जय नागरी!!