आत्मीय कंपन
आत्मीय कंपन
तुम मुझसे जब रूबरू हुए
एक रूहानी स्पर्शालिंगन का अनुभव हुआ
मेरा आत्मीय कंपन
द्वितीय प्रहर का वह प्रहरी
शांत चित्त परिवेश
तुम और मैं की भूमिका का निर्वाहन
तुम्हारा मौखिक प्रेमिक स्वरूप
अकिंचन किसी प्रकार का कोई हस्तक्षेप नहीं
हदों से परे हम तुम
अपनी सभी सीमाओं को लांघते हुए
वैश्विक आनंद की ओर
तुम मुझे ले गए
हम रुके,थमे और फिर बढ़ते ही गए
अनंत सत्ता को पाने के लिए
स्वयं से स्वयं को मिलाने के लिए
जिसमें तुम्हारा चुंबन भरा स्पर्श ही काफी था
जो मुझे मुझसे ही दूर कर
तुम्हारी बांहों में मुझे जकड़े ले रहा था.....

