एकान्तता
एकान्तता
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कुछ खास नहीं
मैं खुद से
खुद के बीच
हर दिशा में
अनेकानेक आन्तरिक संघर्ष से जूझ रहा हूं
इसका औचित्य कुछ भी नहीं
पर नयी पीढ़ी के अधर से
अधिकारविहीन हो रहा हूं
मैं हिम से पिघल कर धराशाई हो रहा हूं
शेष अशेष के शब्दो का खोखलापन
नवीन विचारों का संख्यात्मक स्वरूप
अब अजायबघर सा हो गया है
इन्द्रियाँ, मन,बुद्धि तत्क्षण अपना
स्थायित्व समाप्त कर चुकी है
हां मैं निरूपाय होकर
वैश्विक सत्ता से सुदूर
एकान्तता का रूख कर रहा हूं.......।।