श्रीराम
श्रीराम
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निर्गुण निराकार ब्रह्म रूप में ध्यान कीजिए।
ईश्वरीय आभा का स्वतः ही आभास हो जाएगा।।।
हे राम! तेरे स्मरण के रूप अन्नत है,
छवि का साकार रूप केवल हमारे मन मन्दिर के अन्नतर में ही रच बस सकता है,
और दर्शन की अभिलाषा का साक्षात्कारी करण स्वयं के स्मरण पर निर्भर। ।।
पूर्णत आलौकिक स्वरूप, दिग्दर्शन से अभीभूत ।।
आह! क्या संयोग प्रभु अपनी कृपा दृष्टि सदा हम सभी पर बनाए रखना।।।
जय श्रीराम