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Ratna Kaul Bhardwaj

Abstract

5.0  

Ratna Kaul Bhardwaj

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क्यों इंसान बदल रहा है !

क्यों इंसान बदल रहा है !

1 min
700


क्या खता हुई हमसे, क्यों अपने ही लूट रहे हैं 

सोचते-सोचते यह, आंखों से अश्क फुट रहे हैं।


हम कदम होना चाहते थे, एक कदम भी न साथ चले

हर कदम पर न जाने क्यों कारवां छूट रहे हैं।


रुलाते रहे, तड़पाते रहे, रूह छलनी बार बार हुई  

ऐसा दौर चला है, न जाने कितने दिल टूट रहे हैं।


हम जिए भी उनकी खातिर और गिरे भी कई बार 

सारी उम्र बस प्यार बांटा, अब किनारे छूट रहे हैं।


ऐतबार था जिनपर हमें, वही जिस्म छलनी कर गए 

दीदार जिनका सपनों में भी भाता था हकीकत में छूट रहे हैं।  


खुद के लिए न कुछ सोचा न चाहा, बस प्यार के सिवा

आज हसरतें उनकी पूरी हुई, अब हाथों से हाथ छूट रहे हैं। 


यह दुनिया है अजीब यहाँ छीनना रवायत बन चुकी हैं 

अपने हक़ का कुछ मांगो, तो गुस्से पर से काबू छूट रहे हैं। 


न जाने क्यों इंसान बदल रहा है, रिश्ते क्यों गुम हो गए 

तरंगें कहाँ गुम हो गई, दिल के तार क्यों टूट रहे हैं !


चल ए दिल न पशेमान हो तुम अपनी रिवायत से 

तुम्हारे तो इंसानियत से रिश्ते सदा अटूट रहे हैं।


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