चेहरा - एक मृग मरीचिका
चेहरा - एक मृग मरीचिका
कुछ अपने से मुस्कुराते चेहरे,
बेगाने से हो जाते है दूर होने के साथ।
जिंदगी के उतार चड़ाव के साथ,
चेहरे भी रंग बदलते हैं समय के साथ
भीड़ में हर चेहरा कुछ अलग सा होता है,
चेहरे में छुपा चेहरा, चेहरे से ही थलग होता है।
होते, सिक्के के दो पहलू कहते हैं लोग
दो चेहरों के साथ कैसे रह्ते हैं लोग ?
अन्तर्मन की गहराइयों में हम सब भी ऐसे ही है,
जीवन में दो पैमाने हमने भी रखे हैं ।
खत का मज्मूं लिफाफे से ही भांप जाते हैं,
कपड़े देख कर ही इंसान को नाप लेते हैं।
भाषा बदलने के साथ हमारी सोच बदलती है,
यही सोच हमारे साथ वर्षों तक चलती है।
माथा देख कर तिलक लगाने की परम्परा पुरानी है,
इस सोच से लड़ने की प्रेरणा आनी अभी बाकी है।
हैड हो या टेल, दोनो का सार्थक मतलब होना चाहिये,
मैच हो या जिंदगी, खेल, खेल सा खेलना चाहिये।