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Dr. Pankaj Srivastava

Abstract

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Dr. Pankaj Srivastava

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मैं यमुना हूँ

मैं यमुना हूँ

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सूर्य देव और छाया की सन्तान हूँ मैं,

भाई यमराज के कार्तिक-स्नान का वरदान हूँ मैं।

यमुनोत्री से हुआ उद्गम,

उत्तराखंड की माटी हुई तब नम !


गवाह हूँ बाँके बिहारी की हर रास की,

मुरली की अतृप्त प्यास की लीला की!

चली आना राधा रानी यमुना के तीर वो जब बोले हैं,

लगे जैसे आज भी कानों में रस घोले हैं !


मेरे घाट की मिट्टी में, वो पावन राजघाट है,

द्वार खुले है सबके लिए

वहाँ न कोई कपाट है!

प्रयाग की धरती में गंगा,सरस्वती से जा मिलती,

और कहलाती त्रिवेणी !


मैं नदी हूँ, स्त्रोत हूँ आपकी जिंदगी का,

पर आज व्यथित हूँ मुझ पर भार है

लुटियन्स की दिल्ली का !


पूजा के फूल, हवन की राख का विसर्जन,

घुलनशील तत्वों तक क्षम्य है शेष का करो वर्जन !

माँ दुर्गा और गणेश प्रतिमा का विसर्जन,

कलश, झिल्ली, खंडित मूर्तियाँ और फोटो,

ये सफल नही होने देते है मेरी सफाई का मोटो !


मैं नदी हूँ जीवन का बहाव है मुझमें,

फिर क्यों मल-मूत्र के कचरे का दबाव है मुझमें ?

कारखाने, इंडस्ट्री का सारा जहर,

मुझ पर बरपा रहा है कहर!

आप सब मूक हो, देते जवाब दो टूक हो!

सरकार की जान को रोते हो, पर पर मिलते ही मौका

धर्म के नाम पर,

गंदगी और घातक तत्वों की,सुइयाँ चुभोते हो !


लुटियनस दिल्ली मे मैं आज, नाला बन चुकी हूँ, 

इसकी ही तरह, मेरी भी सांसे घुट चुकी हैं। 

आज विकास, आधुनिकता और धर्म के

नाम पर मैं भी जल रही हूँ, 

इसकी तरह मैं भी इंसानियत के मनकों

की माला बड़ी मुश्किल से पिरो रही हूँ।


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