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Varsha Sharma

Abstract

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Varsha Sharma

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मायका

मायका

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मायके के प्यार पर, ये सारी नारी वारी है

कुछ दिन को जाती है, साल भर का प्यार लाती है


उसी प्यार से खुद को, ऊर्जावान बनाती है

ससुराल के छप्पन भोग भी, मां की रोटी पर बलिहारी हैं


मायके के प्यार पर, ये सारी नारी वारी हैं

मायके में जाती है तो खुद बच्ची बन जाती हैं


छोटी-छोटी यादों को डिब्बों में भर लाती है

वापस आते आंसुओं से भीगी इनकी साड़ी है


मायके के प्यार पर, ये सारी नारी वारी है

मां ओ भाभी कहती, सब सामान बांध लो

 

पापा कहते कुछ भूल ना जाना बेटा

सब सामान समेटती हूं,  

बस छूटती यादों की गठरी है


मायके के प्यार पर ,ये सारी नारी वारी है

मायके को कभी गाली पड़े, तो तन बदन जल जाते हैं


बड़े लोग सही कहते हैं, मायके की तो लकड़ी भी प्यारी है

मायके के प्यार पर, यह सारी नारी वारी है।


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