पहेली
पहेली
कभी सोचा न था . .
ज़िंदगी यूँ पहेली बनकर रह जाएगी,
बीच चौराहे पर खडे होंगे ,
पर राह कोई निकल न आएगी!
किस्मत ने यूँ घूमाकर
छोड़ दिया है चौराहे पर, बीच में . .
कि भूल से गये हैं -
कहाँ से निकले थे और कहाँ जाना है!
जिस राह पर भी जाने का मन बनाए,
राह वो पराई - सी जान पडती है!
मंज़िल की तो खबर ही नही
अपनी परछाई भी अनजान - सी लगती है!
गैरों से बचाके छिपाते थे,
चेहरे को अपने दामन में,
अपनों ने यूँ दामन झटका कि
अब कहाँ जाएँगे खाक छानने में ?