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swati Balurkar " sakhi "

Romance

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swati Balurkar " sakhi "

Romance

गुलाब का फूल

गुलाब का फूल

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कितनी उम्मीद से लाये थे

गुलाब तुम्हे देने के लिए


कितनी जतन से छिपाया था उसे

सबकी नज़रों से बचाया था उसे !


इंतज़ार में तुम्हारे वो मुरझाया

और हम भी सूखे तड़प- तड़पकर !


तुम लौटे थे गुलदस्ता लिए गुलाबों का,

लगा जैसे खून हो गया अनकहे जज़्बातों का !


वो दिन है और आज का दिन

कैद है आज भी सूखा गुलाब मेरी डायरी में !


ना तुम मिले न तुम्हारा इशक नसीब हुआ

किस्सा यूँ प्यार का हमारे दफ़न हुआ !


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