पत्थर तोडता वह
पत्थर तोडता वह
वह तोड़ रहा था पत्थर,
किसी विद्यालय के प्रांगण के बाहर
निर्माणाधीन रोड पर !
जब चार घाव लगाता तब देखता,
प्रांगण में मुक्त खेल रहे बच्चों को!
काम में जुट जाता ,थक जाता है ,
रुक जाता थोड़ी देर !
निगाहें देखती पहले माले पर,
प्रयोगशाला में कुछ करते बच्चों को !
दोपहर में कभी
सूखी रोटी खाने बैठ जाता पेड़ के नीचे
सुनाई देती किसी अध्यापिका की
पढ़ाने की आवाज, या किसी कक्षा से
खिल खिलाने की आवाज,
या किसी छोटी कक्षा के
किसी बच्चे के घर जाने की जिद का रुदन!
बेचैन हो उठता कुछ पल ।
याद आते बाबूजी और अम्मा!
मारपीट कर जब स्कूल भेजते
और वह बार-बार भाग आता !
अब तो बच्चे हंसते -खेलते जाते हैं
हर रोज़ स्कूल को!
फिर आँसू और पसीना पोंछ पोंछ
हथोड़ा उठाता, बड़े-बड़े पत्थर तोड़ता।
थक जाता,बैठ जाता ,
पत्नी और बच्चों को याद करता।
बच्चा भी तो उसका अब
स्कूल जाने योग्य हो गया है ।
फिर उम्मीद से हथोड़ा उठाकर
काम पर लग जाता!