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swati Balurkar " sakhi "

Others

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swati Balurkar " sakhi "

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परिणय

परिणय

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परिणिता बन तुम्हारी

इस घर में पधारी थी!

सबकुछ नया था यहाँ

घर गृहस्थी और तुम भी तो!


यह था अनजान सफर

मुझ जैसी साक्षर महिला के लिये!

लाड प्यार सब छोड़ आयी थी

सब कुछ नया तुम्हारा स्वभाव भि तो!


तौर तरीके, खान पान था

अलग और हट के, बेमेल सा लगे!

अनजान सफर तुम्हारे परिवार का

मैं नये मुसाफिर सी, तुम्हारा भाव भी तो !


पर्व त्योहार मनाने लगे जब

खिली दिल की कली मेरे

उत्साह सा भरा तन मन में क्योंकि

हमराही तुम थे, प्यार तुम्हारा भी तो !



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