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swati Balurkar " sakhi "

Abstract

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swati Balurkar " sakhi "

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खोयी -सी मैं!

खोयी -सी मैं!

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ऐ जिंदगी

लगता है कभी,

जीना है मुझे मेरे साथ !


कुछ पल, कुछ घंटे या दिन

गर मिलें कभी !

सिर्फ मैं और मेरे अंदर छुपी मैं !

दिल खोलके कुछ पल 


अपनेही साथ जीना है मुझे !

मजबू्री है कि

खुशकिस्मती ?

कभी वक्त नहीं मिलता,


कभी मिलती नहीं तन्हाई ?

दोनों मिल जाए कभी

तो अंदर छुपी हुई.

मैं ही नहीं मिलती कभी !


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