आत्मा का ऋण
आत्मा का ऋण
"डू" और "डोण्ट" की ऐसी लंबी लिस्ट में
असली ज़िंदगी जैसे खो जाती है,
एक ही बार मिलनेवाली ज़िंदगी भी
समाज के खोखले उसूलों पर बली चढ़ जाती है!
कुछ भी जब जलता है तो गंध आती है,
पर दिल और भावनाएँ लापतासी भस्म होती है
न साथी, न हमसफर, दिल को समझ पातें
औरों को खुश रखने में ज़िंदगी बीत जाती है!
डर -सा 'अज्ञात' एक मन में है-
क्या हो तब जो किसी दिन साँस रुक जाए?
जीवन के अंतिम पलों में जो कभी
आत्मा मुझसे जीने का हिसाब पूछे ?
गर आत्मा पूछे- बताओ, ईमानदारीसे,
किस क्षण बोलो तुमने मेरी आवाज़ सुनी?
अनुत्तरित प्रश्न छाए चेहरेपर और
अपरिचित - सी अनकही बेचैनी!
आत्म तृप्ति, आत्मानंद, और भावनाओं का बोझ
कितना ऋण? सारा उधार. . . पर क्याें
अगले जनम में चुकाने को. . ?
क्या यही आत्मा, फिरसे यही ज़िंदगी दोहरायेगी?