जुदाई
जुदाई
ना जाने आजकल,
हृदय की रणभूमि पर,
तन्हाईयाँ ताण्डव क्युं मचा रही।
चेहरे की रौनक पर,
वीरानियों का साया क्युं छा रहा।
लबों की सिसक में किसी का ज़िक्र क्युं हो रहा,
बेवफ़ाई के आलम में जुदाई ज़ख़म क्युं दे रहा।
क्या पता,
ये किसी की गैरमौजूदगी से मिली नाराज़गी है,
या किसी से बिछड़ने की बेचैनी।
किसी के जाने का ग़म है,
या किसी को खोने का ख़ौफ़।
कौन जाने इस मन की माया,
दूर होने पर पलकों ने प्यार जताया,
क्योंकि मासूम इस दिल को तो सदैव ही भाया,
उससे मिलने वाली वफ़ा का छाया।

