मीरा-कृष्ण : आध्यात्मिक प्रेम
मीरा-कृष्ण : आध्यात्मिक प्रेम
दो ज़िस्म प्यार के नाम पर मिले तभी मोहब्बत मुकम्मल है,
कहने वाले आजकल के निब्बे- निब्बी हैं,
और उनकी हार्मोनल आशिकी सस्ते नशे की तरह है।
जो आज इस पर चढ़ती कल फिर उस पर उतर जाती है।।
प्यार तो वो है जो ना मिलने पर मिलने से अधिक मुकम्मल लगे,
जब आंखों से खून बहे, होंठ सिसकन कि धुन सुनाए,
दिल के गहरे समंदर में यादों की सुनामी तूफ़ान लाए,
तभी सांसों की माला पे पी का नाम आए,
मन मानो ठहरे पानी की तरह शांत हो जाए।
और आत्मा से उस परमात्मा को एक ही पुकार हो की वो जहां भी रहे उसे बस मेरी उमर लग जाए।।
ये वैदिक समय से चली आ रही आध्यात्मिक प्रेम,
मोहब्बत का एक महंगा नशा है,
जो एक बार चढ़ जाए तो मौत फीकी लगे,
चेतना जाए पर नशा धड़कते धड़कन की भांति बढ़ती चली जाए।।
सिर्फ़ इंस्टाग्राम के बायो में (शिवपार्वती, शिव सदा सहायते, अलहम्दुलिल्लाह फॉर एवरीथिंग, राधाकृष्ण, कृष्ण सदा सहायते) लिखने और कहानी सुनने से क्या बदल जाएगा, कृष्ण और मीरा की कथा तो सबने सुनी क्या सीखा? कुछ नहीं। पर मैंने उन कहानियों से जीना सीखा है, मीरा से सच्ची मोहब्बत में शिद्दत पाना सीखा है।
मीरा को कहां मिले कृष्ण पर ना पाकर भी जो मीरा ने पाया वैसा साथ कृष्ण का कोई बिरला ही पाए,
लिखने वालों ने गीत से कहानी सुनाई " महलों में पली बनके जोगन चली मीरा रानी होकर किसी छोटे जात, ग्वाले जैसे काले की दीवानी कहाने लगी "
"ऐसी लागी लगन मीरा हो गई मगन ।
ये लगन ये मगन का अर्थ कृष्ण के कथित पुजारी इस छक्के समाज और मां बाप को कहां भाई?
अमीरी ग़रीबी, कुल खानदान, जाती धर्म, रीति रिवाज, सामाजिक परंपरा के बहाले,
कृष्ण की सबसे पवित्र पुजारन, मीरा महल से धक्के मारकर निकाल दी गई, जहां समाज गाली और मौत से मीरा को हर पल मारती रही।
वहीं " वो जोगन बन गली गली हरी गुण गाती रही, वो तो प्रेमी प्रीतम को मनाती रही।।
मैंने भी मोहब्बत में मिले हर गहरे ज़ख्म को खून बनाकर नशों में बहाया है,
जब तक बदन में खून रहेगा तब तक उसका प्यार पलेगा,
पास ना होकर होने से अधिक मुकम्मल है प्यार मेरा,
क्यूंकि आध्यात्मिक हूं मैं और आध्यात्मिक है प्यार मेरा।
जैसे थे कृष्ण और मीरा।।
