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Mamta Singh Devaa

Inspirational

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Mamta Singh Devaa

Inspirational

बे - अक्ल

बे - अक्ल

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नफरत क्यों है सबको बढ़ते सुंदर वृक्ष से

इतनी घृणा है उस पर लगी कपोलों से ?

फल आयेंगे तो तोड़ तुम्ही खाओगे

पर उसका एहसान मानने से मुकर जाओगे,

ये जो वृक्ष है बड़ा ही विचित्र है

अकेला खड़ा है ना ही कोई मित्र है,

खुद ही पनप गया बिना किसी अपनेपन के

यही वजह काफी थी लोगों के थोथेपन की,

कोई कह ना पाया की मैंने रोपा पानी दिया

किंतु इसकी डालियों को मैंने आरी दिया ,

किसी को मौका ना मिला खाद तक देने को आये हैं

टहनियाँ काट अपना चूल्हा जलाने को,

ये वृक्ष हमेशा सबकी निःस्वार्थ सेवा करता है

बे - अक्ल मनुष्य इसका समूल नाश करता है ।



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