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Roshan Baluni

Inspirational

4  

Roshan Baluni

Inspirational

गाँव की गलियाँ

गाँव की गलियाँ

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संस्कार जिंदा थे कभी,

घर पाहुना के पाँव।

खो गया है आज वो,

अमराइयों का गाँव।।


सुंदर सुहानी थी हवा,

वो सरसराती भोर।

हरितिमा ओढे थीं घाटी,

नद-नदी का शोर।

कोकिला की कूक से,

आनंद था सब ओर।

नीम पीपल आम की,

मंजुल मनोहर छाँव।

खो गया है आज वो,

अमराइयों का गाँव।।


प्रात नभ में टिमटिमाते,

हो रहे ओझल सितारे।

यामिनी के बीतते ही,

सो गये सब चाँद-तारे।

सूर्य की आभा-विभा से,

जगमगाते गाँवसारे।

प्रात हलधर खेलते थे,

खेत में सब दाँव।

खो गया है आज वो,

अमराइयों का गाँव।।


हाथ में कस्सी लिए वो,

भरपूर करते थे किसानी।

बाल बाला थे सभी वो,

साथ थी उनकी जवानी।

खेत की पगडंडियों में,

रात-दिन उनकी रवानी।

आषाढ की तपती धरा,

थे गाछ केवल छाँव।

खो गया है आज वो,

आमराइयों का गाँव।।


ढोर-डंगर की सभी,

गलबद्ध वो घंटी सुनी।

ग्वाल-बालों ने सभी,

गोधूलि बेला ही चुनी।

गाँव की चौपाल में वो,

वृद्धजन थे वो गुनी।

चौंतरे को सब जनों ने,

था बनाया ठाँव।

खो गया है आज वो,

अमराइयों का गाँव।।


#गाँव_की_गालियाँ थी सँकरी,

स्थान दिल में था बड़ा।

चौक में खटिया बिछी थी,

था सामने हुक्का खड़ा।

अब गाँव पे चर्चा कहाँ?,

वो शहर को है चल पड़ा।

आबो हवा अर शुद्ध पानी

अब नही वो गाँव।

खो गया है आज वो,

अमराइयों का गाँव।।


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