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Roshan Baluni

Inspirational

4  

Roshan Baluni

Inspirational

"सूरज उबल रहा है"

"सूरज उबल रहा है"

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ऊँचा हिमालय जलता, सूरज भी जल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।।


सूखी पड़ी धरा है, सूखे सभी सरोवर।

सूखे  पड़े  गदेरे,  सूखे  सभी समंदर।

हिमवंत जल रहा है, सब जल ही जल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।


नदियाँ नहीं रहेंगी, फसलें कहाँ उगेगी।

धरणी नहीं बचेगी, साँसें कहाँ बचेंगी?

संकट - विनाश लेकर, जगती को छल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।।


ऊँचे पहाड़  काटे,  काटी हजार डाली।

कंक्रीट के भवन हैं, जंगल हजार खाली।

हिमखण्ड गल रहे हैं, धरती को तल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।


बूँदें नहीं बरसती, जलस्रोत खो रहे हैं।

पानी बिना बहुत से, जल-जन्तु मर रहे हैं।

रासायनिक जहर तू, मानव! उगल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को सूरज उबल रहा है।।


संकल्प ले अभी से, धानी-धरा सजा ले।

द्रुमदल लगा-लगा के, जीवन हरा बना ले।

जागे नहीं अभी तो, अवसर निकल रहा है।

प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।।



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