संकट - विनाश लेकर, जगती को छल रहा है। प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।। संकट - विनाश लेकर, जगती को छल रहा है। प्यारे! बचा जमीं को, सूरज उबल रहा है।।