"माँ"
"माँ"
माँ समान दूजा नही,
यह वेदों की बात।
अनुष्ठान सम मात है,
नमन करो हे तात।।
माँ मंत्रों का जाप है,
दूर होत सब पाप।
माँ ही पूजा-त्याग-तप,
हर लीजो संताप।।
माँ ममता-रसधार है,
प्रेम पाइये रोज।
जन्नत उसके पैर मैं,
इधर-उधर मत खोज।।
माँ सृष्टि समरुप है,
उसकी दया अपार।
सब रस की तू खान है,
शांत-भक्ति-शृंगार।।
ओढूँ आँचल-छाँव को,
मिले हर्ष अपार।
तव बिन जीवन सून है,
नीरस यह संसार।।
माँ काशी-कैलास है,
भटकत अटत न जाय।
मैले मन को छाँडि दे,
माँ का बनें सहाय।।