क़लम की ताकत
क़लम की ताकत


क़लम को बना हथियार
शब्दों से तू कर वार
जग की कटु वाणी सुनकर
स्वयं से तू मत हार
जब जीवन में अंतर्द्वंद चल रहा हो
कोई मार्ग न नज़र आ रहा हो
तू बस क़लम उठा
कुछ पल को ही मन अशांति मिटा
निज हृदय को न तपा
खुद से न हो तू खफ़ा
मनोस्थिति की स्याही बिखरा
खुद को न तू दोषी ठहरा
जब साथ न होगा तेरे कोई
क़लम होगी तेरे साथ तब भी
तो क्या सोच रहा अब भी
वो कभी न कहेगी तुझे दोषी
तभी तो कहती हूँ मैं :
क़लम को बना हथियार
शब्दों से तू कर वार
न सुन किसी की फटकार
खुद को क्यों रहा है धिक्कार।