मैं
मैं
इक अनकही पहेली सी हूँ मैं
उलझनों की सहेली सी हूँ मैं
सख़्त मिज़ाज हूँ, पर खुदगर्ज नहीं
हाँ, अपनी माँ की नकेली हूँ मैं
रहती हूँ मस्त, बनती हूँ कभी सरपरस्त
बाँटती हूँ खुशियाँ, खिलखिली हूँ मैं
हूँ थोड़ी सी जिद्दी और थोड़ी नख़रेबाज़
अपनी माँ के लिए बावली हूँ मैं
फूलों के मानिन्द हूँ मखमली
हर बात के लिए कौतूहली हूँ मैं।