सफरी पल
सफरी पल
हर जीव अजीव -एक यात्रा करता फिरता है॥
कोई स्थिर रहकर बदलते परिवेश देखता है
तो कोई पल पल विचरता नये नये मोड़ों से गुजरता फिरता है॥
कोई उसकी यादों को शब्दों में बाँधता है,
कोई चित्रों में और कोई बीते कठिन पलों को अपने साथ ही दफ्न करता जाता है॥
कुछ यात्रा घर बार बनाने में रीयल स्टेट की दुनिया झांकता है॥
कुछ अस्पतालों और डाईगोनोस्टिक सैन्टर्स में पैसा फेंकते यात्रायें करते देखे जाते हैं,
कुछ पैसा वसूल और कुछ पैसे की बरबादी के साथ अपनों को खोते -फिर रोते देखे जाते हैं॥
कुछ अपने जीवन में कमा बचा कर बच्चों को स्थायित्व देकर दुनिया देखने निकलते हैं, सुकून के साथ॥
लेकिन ऐसे बिरले ही मिलते हैं॥
वहाँ कभी कभी वक्त के साथ एक पहिया यानी एक बन्दा स्वास्थ्य संक्रमण में घिरा देखा जाता है॥
.. तो हर पेशे -हर उम्र - हर मानव की अपनी यात्रा चल रही है..
अकेले अकेले , धीमे या तेज … और कुछ उन्हें वो सब करते देख रहे हैं मलीन मन से!