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Navneet Gupta

Drama Tragedy

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Navneet Gupta

Drama Tragedy

दर्द भी कहाँ अपने?

दर्द भी कहाँ अपने?

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बड़े ही अनुभव देती! अचानक पर्दे से आयी

बेपरदा करने॥

कमर की छोटी सी बिस्तर छोड़ते वक्त

ऐंठन की दस्तक के साथ।

जब तक मिज़ाज बने किसी

मस्कुलर पेन का, खुजलाहट दी॥

शाम तक प्यारे दाने, खूबसूरत लालिमा लिये,

अगली सुबह तक तो एक सौ अस्सी डिग्री

में घर बना लिया॥

क्या चित्रकारी , लालिमा के बीच॥


तय हो गया वाईरल संक्रमण का

हरपीस नाम से,

हरपीस ..

पर पीस कहाँ, दूर दूर तक नहीं।

अब दर्दों से रूबरू होने का वक्त था,

कोई पक्का इलाज नहीं 

निजात पानेवाला ॥

बस रहना होगा अपने शरीर में बने इसके घर के साथ॥

अब तो ये आयेगी 

जायेगी

हमें तड़पा जायेगी

कुछ हफ़्तों को औरों से दूर करती रहेगी॥

दर्दों के अनेक प्रकारों

से साक्षात्कार कराती जो है॥

खुजली की शुरुआती मिठास , लपकन, चुभन

नदीं बुलबुले सी छुआती , टीस सी देती॥


अब तो इन्तज़ार में हैं

कब अन्दर से मीठी खुजली आयेगी

उम्मीद की किरण लेकर॥

जब जीवन फिर शुरू होगा॥

रंग रूप भी बदल गया है, 

पेट कमर पर लाल

और अब कालिमा लिये नदीयाँ, नालों के रंगमंच हैं॥

और दर्द जो झेले जा रहे हैं,

वो भी कब मेरे रहेंगे 

सदैव।

मेरे साथ उन्हें भी जाना होगा॥


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