हमारे राम
हमारे राम
एक बार तुम ने अयोध्या छोड़ा
पिता की ख़ातिर
या किसी दिव्य कारण॥
ना जाते तो
इतनी प्रेरक
कथा कैसे बनती॥
तुम मर्यादा पुरुषोत्तम बने
तुम्हारे स्वरूप दिलों पे छाये॥
एक बार फिर तुम को
तुम्हारे प्रतीक मंदिर पर
आक्रान्ता बाबर ने
अतिक्रमण कर लिया
मस्जिद बना दी॥
… कुछ ना कर सके तुम
शायद घुट कर
देखते रहे होगे
सत्ता जो सर पर थी
रावणी ॥
तुम्हारा
वंशज
भारत
आया भी 47 में
वो भी तुम्हारी बेड़ियाँ
वैसे ही छोड़ गया॥
अलबत्ता कुछ
अपनों ने तुम्हें
टैन्ट तो दिया
निवास को॥
टैन्ट से तुम्हैं भव्य
निवास के लिये
कितने ही साल, जीवन दिये॥
दिलों में तुम सदा थे
कमजोर दिलों के॥
शेर दिलों ने
आख़िर तुम्हैं भव्य नव्य रूप
में तुम्हारे नगर में ला ही दिया॥
तुम्हारी दिव्यता
अब नये आयाम देगी
दुनिया को॥
राम राज भी चाहेगें
तो प्रेरणा पायेगें॥
लेकिन राम राज को
रावण भाव मिटाना होगा_ वो क्या
संभव है!
