मैं टूट भी जाऊँ तो...
मैं टूट भी जाऊँ तो...
मैं टूट भी जाऊँ तो क्या, मुझे कमजोर न समझना
मुझे आता है टूटकर, बिखरकर खुद को समेटना
डाल पर लगे फूल का टूटना तो प्रकृति का नियम है
टूटकर अपनी खुशबू बिखेरना, यह उसका संयम है
टूटकर, बिखरकर खुद को समेटना आसान नहीं होता
पर ये टूटना बिखरना ही तो मुश्किलों से लड़ने का हौसला देता
माना ये ज़िन्दगी हर क़दम पर मेरा इम्तेहान लेती है
पर ये ही तो मुझे जीवन जीने के तरीके सिखाती है
मुक़ाम तक पहुँचने की राह पर चलते हुए बस अभी मैं चुप हूँ
खुद से ही खुद को मिलाने की कशमकश में किसी सोच में शायद गुम हूँ।