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महेश जैन 'ज्योति'

Inspirational

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महेश जैन 'ज्योति'

Inspirational

लगी नजरिया रे

लगी नजरिया रे

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सूने-सूने मन के पनघट, रीती पड़ीं गगरिया रे।

किस बैरी की लगी रूप को, जाने बुरी नज़रिया रे।।


बहुत दिनों से मन के आँगन, नहीं नेह बरसात हुई,

साथ चला करते थे हिलमिल, वो अतीत की बात हुई,

नागफनी मन में उग आईं, ऐड़ी चुभें कॅकरिया रे।१


छुआछूत ने भेदभाव ने, माँ के दिल को चीर दिया,

याद नहीं कितने दिन पहले, प्रेम भाव का नीर पिया,

वैमनस्य की घिरी घटायें, गरजें द्वेष बिजुरिया रे।२


धन लोलुपता सुरसा जैसी, मुँह फैलाये अड़ी हुई,

निकले पूत कपूत मात के, कील हृदय में गड़ी हुई,

खोया भाई-चारा सिसके, ढूंढे गाँव नगरिया रे।३


आओ यत्न करें सब मिलकर, बैठें पुनः विचार करें, 

क्या खोया है क्या पाया है, नज़रों पर फिर धार धरें, 

सोये हुए दिलों में जागें, ईसा खुदा सॅवरिया रे।४


पुनः नवल शृंगार करें हम, अपनी भारत माता का,

जिसे देखकर अमर शहीदों, का मन कभी लुभाता था, 

दमके माँ की हरी घघरिया, गोटे जड़ी चुनरिया रे।५


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