बेटियाँ
बेटियाँ
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चहका करती हैं बुलबुल सी, बेटी घर के आँगन में।
ये पुरवैया ब्यार सरीखी, जैसे बहती सावन में।।
चलें पेट में आरी इन पर, कोई तरस न खाये रे,
सोचूँ तो ये पीड़ा मन की, आँसू बन बह जाये रे,
कली नहीं तो फूल न होंगे, डाली सूनी बागन में।
ये पुरवैया .....
इनके बिन संसार न चलता, ये जग की आधारा हैं,
शक्ति स्वरूपा दिव्य रूप हैं, ये देवी साकारा हैं,
ये ही बरसें घटा सरीखी, ज्यों रँग बरसे फागन में।
ये पुरवैया .....
पालो पोसो इन्हें पढ़ाओ, फूलों सी मुस्कायेंगी,
बाबुल का घर छोड़ एक दिन, चिड़िया सी उड़ जायेंगी,
रोशन नाम करेंगी कुल का, खुशी भरेंगी दामन में।
ये पुरवैया .....