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महेश जैन 'ज्योति'

Tragedy

4  

महेश जैन 'ज्योति'

Tragedy

हुआ दर्द से प्यार

हुआ दर्द से प्यार

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तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ

किये हुए अनुबंध ?

-

आँखें खोलीं ,मिली पांव को 

दलदल की सौगात,

सीख लिया तब से नयनों ने

जगना सारी रात ,

पीर महकने लगी उठी आँसू से 

मधुर सुगंध ।

-

पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी

अनेकों ठेक,

संघर्षों का साॅझा चूल्हा

रहा उन्हें था सेक,

जुड़ा पसीने का पीड़ा से 

मिसरी सा संबंध ।

-

साथ चले फिर गये छोड़कर

नदिया के मझधार

जैसे-तैसे बाहर आये

बैठे हैं इस पार,

अब कुछ झुके हुए से लगते

तने-तने स्कंध ।

-

और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर

लेता दर्द हिलोर,

कितनी दूर और रजनी से

होगी सुंदर भोर ,

साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी

टूटेगा फिर बंध ।

-

साथ पुराना दर्द लगे अब

अपना मुझको यार,

टीस उठे तो लगता उसने 

जतलाया है प्यार,

अंत समय तक साथ निभेगा

अनुपम किया प्रबंध ।



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