हुआ दर्द से प्यार
हुआ दर्द से प्यार
तुम्हीं बताओ कैसे तोड़ूँ
किये हुए अनुबंध ?
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आँखें खोलीं ,मिली पांव को
दलदल की सौगात,
सीख लिया तब से नयनों ने
जगना सारी रात ,
पीर महकने लगी उठी आँसू से
मधुर सुगंध ।
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पथरीली राहें पाॅवों में पड़ी
अनेकों ठेक,
संघर्षों का साॅझा चूल्हा
रहा उन्हें था सेक,
जुड़ा पसीने का पीड़ा से
मिसरी सा संबंध ।
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साथ चले फिर गये छोड़कर
नदिया के मझधार
जैसे-तैसे बाहर आये
बैठे हैं इस पार,
अब कुछ झुके हुए से लगते
तने-तने स्कंध ।
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और वज़न कुछ बढ़ा शीश पर
लेता दर्द हिलोर,
कितनी दूर और रजनी से
होगी सुंदर भोर ,
साॅसें थोड़ी इनी-गिनी सी
टूटेगा फिर बंध ।
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साथ पुराना दर्द लगे अब
अपना मुझको यार,
टीस उठे तो लगता उसने
जतलाया है प्यार,
अंत समय तक साथ निभेगा
अनुपम किया प्रबंध ।